'ठरलं तर मग' आजचा भाग २ एप्रिल २०२४ Tharal tar mag today's episode reviews.
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Humayun Tomb Delhi |
भारत के स्थापत्यकला में मुघलोका काफी बड़ा योगदान है भारत में मुघलो के युग में काफी बड़ी मात्रा में इमारतों महालों का निर्माण हुवा और भारत में एक नए स्थापत्य शैली कागज़ हुवा भारत में पहली बार गुम्बट मीनारे बागान कमाने बड़ी मात्रा में विकसित हुवी । कई सारी इमारते समय के साथ ढह गई तो कई सारी इमारते आज भी भारत की दुनियाभर में शान बने हैं। आज हम इस ब्लॉग में एक ऐसे ही मुग़ल स्थापत्य शैली के बेजोड़ नमूने की सैर करेंगे जिसने भारत में मुग़ल स्थापत्य शैली का आगाज किया। तो आज हम इस ब्लॉग में सैर करने वाले है दिल्ली में बसे हुमायूँन के मक़बरे की।
भारत में मुघल काल की नीव बाबर ने साल १५२६ में पानीपत की लढाई में इब्राहिम खान लोदी पर विजय प्राप्ति के साथ रखी। बाबर पहिला मुग़ल बादशाह था बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूँन मुघलोंका बादशाह बना। हुमायूँन की मौत एक लढाई में हाथी से गिरने के बाद हुवी।
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बादशाह हुमायूँन की मौत के बाद उसके पार्थिव को दिल्ली के पुराने किले में दफना दिया लेकिन बाद में हिन्दू राजायो की तोड़फोड़ की आशंका के कारण इसे वंहा से निकालकर पंजाब के सरहिंद प्रांत में दफनाया था । हुमायूँन के मौत के बाद लगभग नो साल बाद हुमायूँ की बिवी बेगा बेगम ने अकबर के शासन काल में साल १५६५ में हुमायूँन के मकबरे का निर्माण कार्य यमुना नदी के किए किनारे शुरू किया और साल १५७२ में इसका निर्माण कार्य पूरा हुवा उस ज़माने में हुमायूँन के मक़बरे का निर्माण १५ लाख रुपये के खर्चे से किया था।
मकबरे का निर्माण लाल बलुवा पथरो से किया और मक़बरे के सामने भारत में पहली चारबाग बगीचों का निर्माण किया यह भारतीय उप-महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था,मकबरे के सामने का बगीचा कुराण में जन्नत के जिक्र बगीचे की तरह की बनाया है। बाद में हुमायूँन के मक़बरे के बुनियाद पर कई सारे मुघलो के इमारतों के सामने बड़े पैमाने पर बगीचों का निर्माण किया गया। मकबरे के सामने का चारबाग ३० एकड़ के क्षेत्र में फैला हैं पानी के फवारे और नहरे मकबरे की शोभा और भी बढ़ाते हैं। इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्तुकलात्मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ।
बदांयुनी, एक समकालीन इतिहासकार के अनुसार इस मकबरे का स्थापत्य फारसी वास्तुकार मिराक मिर्ज़ा घियास (मिर्ज़ा घियाथुद्दीन) ने किया था, जिन्हें हेरात, बुखारा (वर्तमान उज़्बेकिस्तान में) से विशेष रूप से इस इमारत के लिये बुलवाया गया था।
हुमायूँन मकबरे के मुख्य पश्चिमी प्रवेशद्वार के रास्ते में अनेक अन्य स्मारक बने हैं। इनमें से प्रमुख स्मारक ईसा खां नियाज़ी का मकबरा ,हलीमा का मकबरा,अरब सराय,अफ़सरवाला मकबरा और नीला बुर्ज नामक मकबरा।
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एक अंग्रेज़़ व्यापारी, विलियम फ़िंच ने १६११ में मकबरे का भ्रमण किया। उसने लिखा है कि केन्द्रीय कक्ष की आंतरिक सज्जा, आज के खालीपन से अलग बढ़िया कालीनों व गलीचों से परिपूर्ण थी। कब्रों के ऊपर एक शुद्ध श्वेत शामियाना लगा होता था और उनके सामने ही पवित्र ग्रंथ रखे रहते थे। इसके साथ ही हुमायूँन की पगड़ी, तलवार और जूते भी रखे रहते थे।
दिल्ली का हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्थानक मकबरे से काफी नजदीक हैं। दिल्ली हवाई अड्डा मकबरे से १६ किमी दूर हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल से हुमायूँन के मकबरे तक पंहुचा जा सकता हैं।
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