माता सप्तश्रृंगी वणी नाशिक महाराष्ट्र SAPTSHRUNGI VANI NASHIK MAHARASHTRA
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माता सप्तश्रृंगी ,वणी नाशिक महाराष्ट्र SAPTSHRUNGI VANI NASHIK MAHARASHTRA
पुरे देश के माता के पार्वती ५१ शक्तिपीठे है जिनमे से महाराष्ट्र में माता के कुल साडेतीन शक्ती पीठ है जिंमे उस्मानाबाद जिले के तुळजापुर में स्थित मा तुळजाभवानी ,नांदेड के माहूरगढ पर बसी माँ रेणुका देवी कोल्हापूर में स्थित माता महालक्ष्मी और नाशिक जिले के वणी मी बसी माता सप्तशृंगी ये साडेतीन शक्ती पीठ है। इनमे से आज हम इस वीडियो में दर्शन करने वाले है नाशिक जिले के वणी में बसी माता सप्तश्रृंगी का, सप्तश्रृंगी पोहचने के लिए सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन है निफाड़ जो यंहा से ३९ किमी दूर हैं नाशिक यंहा का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है जो की यंहा से ५५ किमी हैं।
माता सप्तश्रृंगी का यह मंदिर एक अर्धशक्तिपीठ है,महाराष्ट्र के नाशिक जिले के वणी में माता सप्तशृंगी विराजमान है। नासिक से करीब 55 किलोमीटर की दूरी पर 4800 फुट ऊंचे सप्तश्रृंंगी पर्वत पर माता का मंदिर हैं । सप्तश्रृंगी मंदिर स्थित मां की मूर्ति आठ फुट ऊंची है इस प्रतिमा की 18 भुजाएं हैं। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए तक़रीबन ५०० सिडिया चढ़कर जाना पड़ता हैं। एक साल में यहां देवी के दो रूप नजर आते हैं कहते हैं कि चैत्र महीने में में देवी का स्वरूप प्रसन्न तो अश्विन नवरात्र में गंभीर दीखता हैं।
माता का मंदिर सात पर्वतों चोटियों से घिरा हुआ है इसलिए यहां की देवी को सप्तश्रृंगी कहा जाता है सप्तश्रृंगी मतलब सात पर्वतो की देवी। मान्यता है की सात पर्वत अपने प्राकृतिक सौंदर्य का माता को श्रृंगार करते हैं और इसी कारन इस मंदिर का नाम सप्तश्रृंगी पड़ा। सप्तश्रृंगी माता को ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से भी जाना जाता हैं। सप्तश्रृंगी की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के त्रिगुण स्वरुप में पूजा होती हैं।
कहा जाता है की महिषासुर नामक राक्षक का वध करने के लिए सभी देवी देवताओंने माता से प्रार्थना की फिर माता ने महिषासुर का वध इसी जगह पर किया। जब सभी देवी देवताओंने माता से महिषासुर के वध के लिए प्रार्थना की तब सभी देवी देवताओंने माता को अपने अपने शस्त्र -अस्त्र दिए इसी कारण माता सप्तश्रृंगी को कुल १८ भुजाएं है और इनमे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्, भगवान महादेव का त्रिशूल,इंद्रदेव का वज्र अदि हर तरह के अलग अलग अस्त्र शस्त्र माता के अठरा हाथो में हैं । कहा जाता है की माता सप्तश्रृंगी और महिषासुर के युद्ध के प्रामाण आज भी इस परबत पर मौजूद है , जब महिषासुर वध करने के लिए माता ने अपने त्रिशूल से वार किया तब यंहा के परबत में छेद हुवा।
मंदिर पहुचते समय ही रास्ते में महिषासुर का भी मंदिर है जो भैंस के कटे हुवे शिर में विराजमान है । इसी जगह पर महिषासुर का वध हुवा था और तभी से माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता हैं। मान्यता है की भगवान् राम जब अपने १४ साल के वनवास में थे तब वो माता का दर्शन करने के लिए यंहा आये थे।
माता सप्तश्रृंगी के बारे मान्यता हैं जिस महिला को संतान नहीं होती उसकी इच्छा माता सप्तश्रृंगी पूरी करती है नवरात्र के दौरान माता सप्तश्रृंगी की गोद भराई होती है।
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