'ठरलं तर मग' आजचा भाग २ एप्रिल २०२४ Tharal tar mag today's episode reviews.

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 'ठरलं तर मग' आजचा भाग २ एप्रिल २०२४ Tharal tar mag today's episode reviews  ठरलं तर मग या मालिकेच्या आजच्या भागामध्ये आपण पाहणार आहोत सुभेदारांच्या घरची धुळवड अगदी उत्साहात साजरी होत असते प्रत्येक जण एकमेकांना रंग लावत असतात मग काही वेळानंतर तेथे पुर्णाआजी येतात तेव्हा अस्मिता पळत  जाते आणि आजी असं म्हणून पुर्णाआजीला  रंग लावते त्या खूपच खुश होतात आणि सायलीकडे पाहतात तर ती एकटीच उभी असल्यामुळे त्या विचारतात ही का अशी उभी आहे ग त्यावेळी अस्मिता म्हणते अर्जुनची वाट पाहत असेल बाकी काय असं म्हणून ती लगेच नाक मुरडते मग काही वेळानंतर तेथे प्रताप येतो आणि म्हणतो पुर्णाआजी मी तुला रंग लावणार असं म्हणून तो देखील आता पुर्णाआजी रंग लावतो तेवढ्यातच कल्पना विमल त्याचबरोबर सायली देखील तेथे येतात सायली पुर्णाआजी रंग लावून म्हणते हॅपी होळी पुर्णाआजी असं म्हणून ती आशीर्वाद देखील घेते तेव्हा त्या देखील सायली ला आशीर्वाद देतात पुढे पुर्णाआजी विचारतात अरे अश्विन आहे कुठे? तेवढ्यातच अश्विन आत येथे येतो आणि पूपुर्णाआजी विचारतात की अरे तू कुठे गेला होतास एवढा वेळ तो म्हणतो मी दादाला बोलवायला गेल

"सिंहगड" मराठा साम्राज्य का ऐतिहासिक किला ( Sinhgadh Fort ,Pune Maharashtra )


"सिंहगड "मराठा साम्राज्य का ऐतिहासिक किला  

सिंहगड किला छत्रपति शिवजी महाराज के राज्य का एक महत्वपूर्ण किला था | पुणे शहर से केवल ३६ किमी खडकवासला रोड पर ये किला भुलेश्वर नामक एक पहाड़ी पर स्थित है | ये किला समुद्री सतह से लगभग १३१२ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | इस किले से पर्यटकों को मराठा साम्राज्य के कुछ और किलेजैसे के   विसापूर,राजगढ़,तोरणा पुरंदर और लोहगड दिखाई देते  है |इस किले के निर्माण संबधी  कोई पुख्ता साबुत इतिहास में नहीं मिलते इस किले के ऊपर भगवान कोंढानेश्वर का एक यादवकालीन मंदिर है जो की भगवान शिवजी का एक रूप माना  जाते है इसी कोंढानेश्वर की वजह से इस किले का नाम कोंढाणा पड़ा ,और इसी कारण ये  माना जाता  है की इस किले का निर्माण यादव राजाओ ने कराया था |इस किले पर यादव ,तुगलग, विजापुर के आदिलशाह, अहमदनगर के निजामशाह ,मुघल और आखिर में मराठा एंव  ब्रिटिशो का कब्ज़ा रहा था |


सन १६६५ में पुरंदर की  संधि से ये किला मुघलो को मिला ,लेकिन शिवाजी महाराज को ये कदापी  मंजूर नहीं था पश्यात  महाराज ने इसपर फिर से कब्ज़ा करने की कवायत सुरु की इस किले को हासिल करने का इतिहास भी बड़ा रंजक है जब शिवाजी महाराज ने इस कार्य के लिए अपने वफादार सेनापति तानाजी मालुसरे को चुना लेकिन वुसी वक्त तानाजी के  बेटे की शादी थी तो शिवाजी महाराज ने ये काम दूसरे सरदार को देने को कहा तो तानाजी ने कहा  "आधी लगीन कोंढाण्याचे मग रायबाचे " (याने पहले किले की फ़तेह होगी और बाद में रायबा की शादी) और उस वक्त ये किले का मुघल सरदार था उदयभान राठोड|



 तानाजी ने अपने ५०० सैनिको के साथ मार्च १६७० में  अमावस्या  की रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुवे किल्ले पर हालमा बोल दिया और इसी लड़ाई में तानाजी शहीद हुवे  उदयभान और तानाजी दोने ही बहुत पराक्रमी थे एक दूसरे से लड़ते हुवे दोने शहीद हुवे |  तानाजी के छोटे भाई सूर्याजी ने अपने बाकि सैनिको से साथ किले पर फ़तेह हासिल की | किला जितने की और तानाजी के शहीद होने की खबर जब शिवाजी महाराज को मिली तो उनके जुबान से केवल दो शब्द निकले "गड अाला पण सिंह गेला " (किला आया लेकिन मेरा शेर गया ) और उसी वक्त शिवाजी महाराज ने तानाजी की याद में इस किले का नाम बदलकर सिंहगड रख दिया  |
१७०३ में औरंगजेब ने फिर से इस किले  को अपने कब्जे में लिया, १७०६ फिर से मराठो ने किला अपने कब्जे में लिया, तबसे लेके १८१८ तक सिंहगड मराठो के कब्जे में रहा १८१८ में अंग्रजो ने इस किले को अपने राज्य से जोड़ दिया | 


किले में आज भी कई सारी  जगह अच्छी स्थिति में है इनमे छत्रपति राजाराम ( शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र )की समाधी जिनकी मृत्यु किलेपर १७०० में हुवी थी | देवटाके जंहा पर मीठे पानी  का झरना है जो साल भर कभी भी नहीं सूकता | ऐसा माना जाता है की महात्मा गाँधी जब भी पुणे आते थे तो यंहा का पानी जरूर मंगवा कर पिते थे |


 तानाजी मालुसरे का स्मारक,उदयभान राठोड कीसमाधी स्थल,लोकमान्य तिलक का घर,पुणे दरवाजा,कल्याण दरवाजा,कोंढानेश्वर मंदिर,डोंगरी कड़ा  जंहा से तानाजी ने किले पर मॉनिटर छिपकली की मदत से चढाई की थी |




सिंहगड के ऊपर तक आप अपनी निजी वाहन लेकर जा सकते है | लेकिन किले पर पैदल चढ़ाते का मजा कुछ और होता है ट्रैकिंग करने के लिए ये पुणे की ये सबसे उचित जगह मानी जाती है | वीकेंड में भारी संख्या में  ट्रैकिंग करने के लिए लोग यंहा आते है |

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